निगम पार्षद जी के नाम एक पत्र
ये एक आम आदमी की मुहिम है जिसे नाम दिया है ..एक चिट्ठी । एक चिट्ठी जो रोज़ खोलेगी सरकार की आंख , एक चिट्ठी जो बताएगी कि आम आदमी ने क्या देखा , एक चिट्ठी जो बेशक रोज़ न पढी जाती हो , लेकिन लिखी रोज़ जाएगी …और उसे यकीन है कि एक न एक दिन वो जरूर पढी जाएगी
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मंगलवार, 25 नवंबर 2014
पार्कों में कचरा पेटी लगवाइये
गुरुवार, 13 नवंबर 2014
एक पाती निगम पार्षद/ डिप्टी मेयर जी के नाम ............
जैसा कि आप सब जानते हैं कि इस ब्लॉग को मैंने अंतर्जालीय प्रमाण के रूप में बनाया है , जो गवाह है उन चिट्ठियों का जिन्हें किसी न किसी समस्या को लेकर , तमाम जनप्रतिनिधियों/अधिकारियों /मंत्रियों /सरकार को मैं समय समय पर लिखता रहा/रहता हूं ।
दूसरी खास बात ये है अब , मोबाइल कंप्यूटिंग के सहारे इस ब्लॉग पोस्ट को पूरी तरह से मोबाइल पर तैयार करके पोस्ट किया है । देखता हूं कि प्रयोग सफ़ल रहता है या नहीं । आज की चिट्ठी हमारे क्षेत्रे के निगम पार्षद जो संयोग से राजधानी दिल्ली के डिप्टी-मेयर भी हैं , उन्हें क्षेत्र में एक भी जनसुविधा के न होने के कारण हो रही कठिनाइयों की तरफ़ उनका व प्रशास का ध्यान दिलाया गया है ...मुहिम जारी रहनी चाहिए/मुहिम जारी रहेगी ॥
शुक्रिया ॥
सोमवार, 10 फ़रवरी 2014
मुख्यमंत्री - जरा बीमार का हाल तो पूछो
आदरणीय मुख्यमंत्री जी ,
दिल्ली सरकार ,
दिल्ली ।
सादर अभिवादन । प्रदेश में प्रशासनिक परिवर्तन की पहल के प्रयास के लिए शुक्रिया और आभार । इस पत्र के माध्यम से मैं आपका ध्यान राजधानी दिल्ली में कुकुरमुत्ते की तरह उगे हुए चिकित्सालयों , क्लीनिकों व अस्पतालों की ओर दिलाना चाहता हूं । आपकी ओर से सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था को दुरूस्त करने के लिए कई नए कदम उठाने की बात सुनी जा रही है ऐसे में मेरा एकमात्र निवेदन यह है कि सभी सरकारी अस्पतालों में इतनी दवाई और चिकित्सा सामग्री उपपब्ध होना सुनिश्चित कराया जाए कि लगभग हर अस्पताल के सामने खुला पडा दवा बाज़ार बुरी तरह चौपत हो जाने पर मजबूर हो जाए ।
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इनकी स्थिति में सुधार व परिवर्तन तो फ़िर भी योजनाबद्ध तरीके से किया जा सकता है किंतु लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड करते सिर्फ़ पैसा बनाने की बेतहाशा दौड में शामिल ये सभी निजि चिकित्सा संस्थान ,नर्सिंग होम ,अस्पताल ही गैरजिम्मेदाराना और लापरवाही भरे तरीके के कारण आज पूरे समाज में साक्षात मौत की दुकान से लगने लगे हैं । छोटे से क्लीनिक से लेकर बडे बडे आधुनिक अस्पतालों में जैसे बेतहाशा पैसा बटोरने की हवस और होड लगी हुई हो , कहीं भी वो चिकित्सकीय सेवा भावना का नामो निशान नहीं देखने को मिलता है ।
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हालांकि ऐसा नहीं है कि ये स्थिति शत प्रतिशत में है किंतु ये भी सच है कि अधिकांश में इन चिकित्सा संस्थानों को मुनाफ़े के लिए बनाई गई किसी कंपनी की भांति चलाया जा रहा है । लगभग हर अस्पताल में ईलाज करवाने के लिए पहुंचे मरीज़ और उसके तीमारदार पर एक अनचाहा बोझ और चिंता तो उस ईलाज़ का आर्थिक भार उठाने की मिल जाती है । इसके बावजूद अस्पतालों में फ़ैली अव्यवस्था , गलत ईलाज़ , मरीज़ों के साथ दुर्व्यवहार आदि पर शीघ्र ध्यान दिए जाने की जरूरत है । इन तमाम चिकित्सा संस्थानों को इनके लिए निर्धारित किए गए सारे मानकों के पालन की सुनिश्चितता तय करने के लिए यथाशीघ्र नियम कानून बनाने की योजना को भी अपने ऐजेडें में शामिल करने की कृपा करें क्योंकि आम आदमी के स्वास्थ्य की सुरक्षा ही देश का स्वस्थ भविष्य तय करेगा । उम्मीद है कि आप इस पत्र का संज्ञान लेंगे ।
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